मंगलवार, 7 जून 2022

घर और उसका प्रभाव-बच्चों में संस्कार दे




     मनुष्य के विकास को ले कर एक बार एक प्रयोग किया गया. दो बच्चों को उन के जन्मते ही घने जंगल में गुफा के भीतर रख दिया गया. उन्हें खाना तो दिया जाता था लेकिन उन की किसी प्रकार परवरिश नहीं की गई। उन्हें भाषा नहीं सिखाई गई, कपड़े पहनने नहीं सिखाए गए और शरीर की देखभाल करना नहीं सिखाया गया. एक तरह से ये बच्चे मानव समाज और उसकी सभ्यता से दूर रखे गए।

कुछ सालों बाद बच्चों को परखा गया, तो पाया गया कि ये एक तरह से आदिमानव बन गए थे। लंबेलंबे बाल और उलझी जटाएं, लंबे नाखून.. पूरा मानव शरीर जानवरों के समान दिख रहा था। न ये बोलना जानते थे, न इन से बोली गई बात ही समझ पाते थे। सभ्य मानव के कोई लक्षण इन में नहीं थे।

इस से जो निष्कर्ष निकला, वह दर्शाता है कि व्यक्ति में संस्कार डाले जाते हैं।

 व्यक्ति को बोलना, पढ़ना, लिखना सिखाया जाता है।

व्यक्ति की परवरिश के हर पहलू पर ध्यान दिया जाता है, तब जाकर वह सभ्य मानव बनता है। विकसित समाज का एक हिस्सा बनता है।

      कुछ बच्चों में स्वभावतः दूसरों की सहायता करने की भावना होती है। उन्हें किसी की सहायता करने के लिए कहने की आवश्यकता नहीं होती। यही बात आयशा के साथ थी। जैसे ही वह अपनी या किसी अन्य अध्यापिका को हाथ में किताबों और कापियों का बोझा लेकर चलती हुई देखती वह दौड़कर उनके पास पहुँचती और उनके हाथ से पुस्तकों को ले लेती। अध्यापक के कक्षा में आने से पहले उसका ध्यान ब्लैक बोर्ड (श्याम पट्ट) पर अवश्य जाता और वह उसे साफ़ कर एक चॉक तथा डस्टर अवश्य रख देती। अगर वह माली को दो घड़ों में पानी उठाकर जाते हुए देखती तो वह उससे एक लेकर पौधों को पानी देना प्रारंभ कर देती। सड़क पर गिरा हुआ कोई पत्थर उठाना, कागज़ के टुकड़ों को कूड़ेदान में डालना, किसी गिरे हुए बच्चे को उठाना, स्कूल के कार्यक्रम में मंच के पीछे हर प्रकार की मदद देना, कक्षा के बाद आर्ट कक्षा की सफ़ाई करना, तानपुरे को उसके खोल में डाल देना, हॉकी स्टिक को खेल के मैदान में ले जाना और खेल के बाद उन्हें फिर बटोर कर लाना, किसी खास मौके पर मिठाई बाँटना, यह सब उसके लिए बड़ा ही स्वाभाविक था। वह चुपचाप शांत भाव से मुसकुराते हुए यह सब कुछ करती थी। उसे ऐसा कभी नहीं लगता था कि वह कोई असाधारण बात कर रही है। उसके लिए तो यह सब बहुत की स्वाभाविक था और दूसरों की सहायता करने में उसे बहुत खुशी होती थी।

      जब पाठशाला में सामाजिक दस्ता (समाज सेवा दल) बनाने की योजना की घोषणा की गई तब सबसे पहले उसने अपना नाम दिया हालांकि यह कार्य बड़े विद्यार्थियों के लिए था। उसने अपनी अध्यापिका से प्रार्थना की कि उसे भी चुन लिया जाए और नौवीं तथा दसवीं कक्षा के स्वयंसेवकों की सहायता के लिए उसे रखा जाए। वे सब उसे इतना प्यार करते थे कि उन्होंने इस बात का स्वागत किया। पहला अभियान स्थानीय अस्पताल के बच्चों के शिशु केंद्र का था। वहाँ पहली बार उसने मनुष्य की ऐसी पीड़ा का सामना किया जो पहले कहीं नहीं देखी थी। यह देखकर उसका दिल भर आया। वह उस समय केवल बारह साल की थी और एक लड़के को जिसके घुटने की हड्डी टूट गयी थी पलस्तर में देखना, एक लड़की को बैसाखी के सहारे लंगड़ाते हुए चलते देखना, एक छोटे बच्चे को गाड़ी में देखना पोलियो वाले एक बच्चे को एक प्रकार की गाड़ी में देखना जिसे पोलियो की बीमारी हो गई थी, एक अन्य लड़के के कंधे में पलस्तर देखना और इसी प्रकार के कई दूसरे बच्चों को देखन उसके लिए एक पीड़ा दायक अनुभव रहा होगा। पहले दिन वह एकदम चुप थी और बड़ी कक्षाओं के छात्रों के साथ रहने में ही उसने संतोष कर लिया। सरला ने बड़े प्यार से उसक हाथ थामा था इससे उसने बड़ी बहादुरी का अनुभव किया और एक दो मुलाकातों के बाद तो वह नियमित रूप से केंद्र में जाने लगी। वह छोटे बच्चों को कहानियाँ पढ़कर सुनाती, चुटकुले सुनाती या उनकी मदद करती सब लोग कहते कि वह बड़ी होकर एक अच्छी नर्स या डाक्टर बनेगी क्योंकि उसके दिल में इतनी दया थी। इन बच्चों की सहायता करते-करते वह अपने घर के पास-पड़ोस विभिन्न तरह के विकलांग लोगों के बारे में सोचने लगी बैसाखी के सहारे चलता बूढ़ा, एक नेत्रहीन लड़की जो बहुत ही अच्छा गाती थी, टोकरी बुनने वाला आदमी जिसके पैर नहीं थे और जो सड़क के किनारे बैठ कर टोकरी बुनता था सचमुच वह एक संवेदनशील लड़की थी।

       शायद आयशा के अंदर यह संवेदनशीलता भरने में उसके घर के वातावरण का बहुत बड़ा हाथ था। उसकी माँ प्राइमरी स्कूल की अध्यापिका थी और पिताजी बैंक में काम करते थे। वे दोनों ही बहुत मेहनती थे लेकिन आयशा सदा ही यह देखती कि किस प्रकार पिता घर के कामों में उसकी माँ का हाथ बंटाते हैं। वे बाजार जाते, सब्जी काटले, खाना बनाकर और बरतन साफ़ करते । जब तक आयशा पाँच साल की नहीं हुई तब तक उसे सुलाने की जिम्मेदारी भी उन्होंने अपने ऊपर ली थी। उसकी माँ भी घर के काम-काज में बहुत ही कुशल थी और इसके साथ ही वह पिताजी की चिट्ठियाँ लिखने और अन्य कार्य में हाथ बँटाती थी क्योंकि वह अंग्रेजी में एम.ए. थी। आयशा ऐसे सुरक्षित तथा संतोषप्रद वातावरण में बड़ी हुई और बिना किसी कठिनाई के बड़े ही स्वाभाविक रूप से उसने दूसरों की सहायता करना सीख लिया।

       लेकिन एक दिन आयशा ने यह अनुभव किया कि रूमी के पिताजी उसके पिता के समान नहीं। रूमी में घर के कामों में हाथ बँटाने की भावना नहीं होती। वह अपने पड़ोसी के घर गई हुई थी। उसका मित्र शंकर वहाँ रहता था। वह भी उसी की उम्र का था हालांकि वह शहर में लड़कों के दूसरे स्कूल में जाता था। शंकर की माँ सारा खाना खुद बनाती। आयशा ने देखा कि उनका अधिकांश समय रसोई घर में पति और बेटे के लिए पूरी, आलू, गुलाब जामुन तथा अन्य कई प्रकार के पकवान बनाने में बीत जाता है। शंकर के पिता का अपना धंधा था और वह पूरा दिन बाहर रहते। जब वह शाम को घर लौटते तो वह चाहते कि उनकी पत्नी उनकी देखभाल करे।

      अपनी पत्नी से वे बहुत कड़ाई से बात करते। उनका बात करने का ढंग भी बड़ा कठोर था और वे मानते थे कि औरतों को अधिक बोलने के लिए प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए इसका नतीजा यह कि पति-पत्नी आपस में बहुत कम बाते करते और यह बात बड़ी स्पष्ट थी कि घर में केवल उनके पिता की चलती है। शंकर की माँ यह सब भाग्य की बात सोच कर स्वीकार कर लेती। यहाँ तक कि वह तो शंकर के सामने ही आयशा से यह कहती कि कुछ भी हो वह एक औरत है और औरतों का काग ही घर की देखभाल करना और पुरुषों का ध्यान रखना है। शंकर इन सब बातों को बिना कुछ पूछे स्वीकार कर लेता। ऐसे ही विचारों को लेकर वह बड़ा हुआ। एक दिन जब आया ने शंकर से यह पूछा कि वह रसोई घर के कामों में अपनी माँ की सहायता क्यों नहीं करता तब उसने बड़े घमण्ड से जवाब दिया, "अरे वह तो लड़कियो का काम है। मैं रसोई घर में नहीं जाता। मैं तो पायलट बनकर हवा में उड़ने वाला हूँ। देखो यह मेरा छोटा हवाई जहाज।

      आयशा यह सुनकर दुखी हो जाती और सोचने लगती कि क्या केवल लड़कों को ही बाहर के रोमांचक तथा मज़ेदार जीवन के आनंद का हक है और लड़कियों के लिए क्या घर पर रहकर खाना पकाना ही सब कुछ है। उसने अपनी माँ से पूछा कि क्यों शंकर के माता-पिता का स्वभाव अलग है और क्यों लड़कियों को घर के अंदर ही कैद रहना चाहिए। उसकी माँ ने उसे बताया कि आज कल लड़कियों के लिए कई व्यवसायों के रास्ते खुले हैं। वे डाक्टर तथा अध्यापिकाओं के अलावा वायुयान परिचारिका, इंजीनियर, नर्स, टूरिस्ट गाइड, अनुसंधाता, रिशेपशनिस्ट, टेलिफोन ऑपरेटर आदि बन रही हैं। लड़कियाँ अंतर्राष्ट्रीय खेलों, पर्वतारोहण आदि में भी भाग ले रही हैं। इसी तरह आजकल पुरुष घर के कामों में सहायता करते हैं क्योंकि नौकर या तो मिलते नहीं और यदि मिलते भी हैं तो बहुत महंगे हैं। उसकी माँ ने कहा कि अब समय बदल रहा है और औरत केवल घर नहीं देखती हालांकि घर की देखभाल भी उतनी ही जरूरी है और माँ को घर की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आयशा के पिताजी बहुत ही अच्छे हैं और अन्य पुरुषों को भी उन्हीं के समान होना चाहिए।

       अब यह बताओ कि तुम क्या सोचते हो क्या तुम यह सोचते हो कि लड़कियों को केवल रसोई घर में ही रहना चाहिए और लड़कों को उससे कोई संबंध नहीं? शंकर का यही विचार था क्योंकि उसके माता-पिता ने उसके सामने वही उदाहरण रखा था। शायद तुम इस विषय पर चर्चा कर सकते हो।

       साथ ही यह भी सोचो कि आयशा में दूसरों की सहायता करने की भावना कैसे आई। क्या यह उसे जन्म से ही मिली थी या उसके घर के वातावरण में मिली ? तुम्हारे अंदर के गुणों के विकास में घर के वातावरण का कितना हाथ है ? शिक्षकों के विचारों की तुम्हारे विचारों के निर्माण में क्या भूमिका है? क्या तुम उनसे प्रभावित होते हो ? क्या तुम अपने स्कूल के बाहर के दोस्तों से प्रभावित हुए हो ? इन पर जरा सोचो।

शनिवार, 13 नवंबर 2021

बाल दिवस बच्चों का दिन


बाल दिवस बच्चों का दिन
        (01)
आज न कोई रोके इनको
जी भर गा लेने दो इनको।
जो भो पाना चाहे खुशी।
बस मिल जाने दो इनको।।
सीधे सादे सच्चों का दिन।
बाल दिवस बच्चों का दिन।।
       (02)
ये मधु प्याले मन के भोले।
मीठी वाणी मधु रस घोले।।
ये भगवान की प्रतिमूर्ति है।
इनको प्यारे खेल खिलौने।।
ये है दिल से अच्छों का दिन।
बाल दिवस बच्चों का दिन।।
       (03)
रूठे जरा-जरा में माने।
भेदभाव ना कोई जाने।।
चाहे काला हो या गोरा।
ये सबको ही अपना माने।।
है भूल भूले लच्छों का दिन।
बाल दिवस बच्चों का दिन।।

रविवार, 12 सितंबर 2021

आदर्श शाला मॉडल

 
 “पठन परिवेश को बढ़ावा देने हेतु हमारी शाला में भी कुछ ऐसा हो!” 
 शिक्षकों से ...बात हो शिक्षा की। 
     हम शिक्षकों को बहुत से ऐसे मौके की जरूरत होती है जिनमें हम बच्चों के बारे में अपने अनुभव बांट सके। हम उस सब के बारे में बातचीत कर सके जो हम महसूस करते है, खासकर तब जब बच्चे सीख रहे होते है और हम सीखने में उनकी मदद कर रहे होते है। बच्चों की ठोस एवं गम्भीर समझ बनाने के लिए, अपने आप को शिक्षक के रूप में बेहतर ढंग से समझने के लिए व सीखने-सीखने की प्रक्रिया को भी अच्छे से समझने के लिए बहुत आवश्यक है एक विस्तृत कार्य योजना बनाना। बच्चों के बारे में अनुभव बाटना व अपने अनुभव आपस में बाटना। प्रत्येक शाला में शिक्षकों द्वारा एक विस्तृत कार्य योजना बनाना जिससे शैक्षिक लक्ष को प्राप्त किया जा सके। इस आलेख मे मुख्य आयामों को पहचानकर शाला हेतु आदर्श वार्षिक कार्य योजना प्रस्तुत की गई है। यह कार्य योजना उन शिक्षकों व संस्थाओं के लिए उपयोगी है जो बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के लिए चिंतित है। जो पठन परिवेश को बढ़ावा देना चाहते है।
   वार्षिक कार्य योजना के आयाम व गतिविधियाँ इस प्रकार  है- 
 (अ) संज्ञानात्मक आयाम
1. शिक्षकों द्वारा सीखने-सिखाने की योजना बनाना।
2. पढ़ाने से पहले विषय की अच्छी तैयारी करके आना।
3. बच्चों को चुनौतियाँ स्वीकार करने के अवसर प्रदान करना।
 (ब) वातावरण 
1. सीखने में सहयोगी वातावरण का निर्माण करना।
2, कक्षा में आकर्षक रंग रोगन कर कोनों को लर्निग/रीडींग कार्नर के रुप में विकसित करना। 
3. बच्चे आपस में साथियों से खुलकर बात करें, इसके लिए गतिविधियाँ आयोजित करना। 
4. शाला परिसर में उपलब्ध विभिन्न सामग्रीयों का अवधारणा के सुदृढ़ीकरण में उपयोग करना।
5. समूह में किसी विषय पर चर्चा करवाकर निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए कहा जाना।
5. परिवेश व पाठ्य वस्तु के परस्पर सम्बन्ध से छात्रों को जोड़ना।
  (स) संस्थागत आयाम (मानव संसाधनों का प्रबंध)
1. सभी शिक्षकों द्वारा एक दूसरे को सहयोग देना।
2. आपस में शैक्षिक मुद्दों पर चर्चा करना।
3. शाला का वार्षिक कैलेण्डर एवं समय विभाग चक्र बनाना।
      (द) सह-शैक्षिक गतिविधियाँ
. शिक्षकों द्वारा सह-शैक्षिक गतिविधियाँ का क्रियान्वयन करना।
पुस्तकालय का रखरखाव तथा उपयोग-
1. पुस्तकालय की पुस्तकों का रखरखाव, संचालन बच्चों की समिति द्वारा किया जाना।
2. बच्चों को संदर्भ सामग्री के रुप में पुस्तकालय के उपयोग हेतु प्रेरित करना।
3. बच्चों के लिए निर्धारित समय में इन पुस्तकों को पढ़ने और चर्चा करने पर ध्यान दिया जाना।
     प्रार्थना सभा का आयोजन-
1. प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाना।
2. सर्व धर्म समभाव की प्रार्थनाएँ शामिल करना।
3. प्रार्थना सभा में शिक्षकों व बच्चों को जन्मदिन की बधाई देना, प्रमुख सूचनाएँ देना, निर्देश देना, अनमोल वचन, समाचार वाचन आदि को सम्मिलित करना।
4. समुदाय के विशिष्ट व्यक्तियों को समय-समय पर आमंत्रित किया जाना।
5. माह या सप्ताह में प्रार्थनाएँ बदल-बदल कर करवाना।
    व्यावसायिक प्रतिबद्धता एवं जवाबदेही-
1. शिक्षक द्वारा शाला समय का संपूर्ण उपयोग करना।
2. अपने विषय की पूर्व तैयारी करके शिक्षण कार्य करना।
3. कक्षा-कक्ष के आकर्षक वातावरण द्वारा बच्चों की उपस्थिति को प्रेरित करना।
4. अपने कर्तव्य व लक्ष्यों के प्रति सदैव जागरूक रहना।
5. हर बच्चे के सीखने पर ध्यान देंना। 
व्यक्तिगत व्यावसायिकता का विकास-
1. शिक्षक द्वारा दी गई संदर्भ सामग्री एवं प्रशिक्षण माड्यूल को ध्यान से पढ़ना।
2. संदर्भ सामग्री की सहायता से अपनी व्यावसायिक दक्षता में वृद्धि करना।
3. नवीन सामग्री एवं निधियों के बारे में अपने सभी शिक्षकों से चर्चा करना।
4. नवीन तथ्यों एवं जानकारियों  से अवगत होकर अपने कार्य को बेहतर ढंग से करने का प्रयास करना।
5. प्रशिक्षण के दौरान सीखी गई बातों का कक्षा शिक्षण में उपयोग करना।
          बाल सभा-
1. बाल सभा का नियमित रूप से आयोजन करना।
2. बाल सभा हेतु बच्चों की समिति गठित करना।
3. शिक्षक का बाल सभा में एक मार्गदर्शक के रूप में रहना।
4. बाल सभा की पूर्व योजना बनाना।
5. बाल सभा में विभिन्न प्रकार की विधाओं के प्रदर्शन को स्थान देना।
7. बाल सभा के दौरान चिह्नित छात्रों को उच्च स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने का अवसर दिया जाना।
8. बाल सभा की गतिविधियों का बच्चों के सह-शैक्षिक विकास में प्रयोग किया जाना।
     भौतिक आयाम-
         भवन-
1. आकर्षक पुताई
2. कक्षा में उचित सज्जा एवं सूक्ति वाक्य लिखना। 
3. भवन को बाला के अनुरूप विकसित करना।
   शाला परिसर- 
1. परिसर साफ-सुथरा बनाना।
2. खेल का मैदान समतल व खेलने योग्य बनाना।
3. शिक्षकों द्वारा बच्चों को खेल खिलाया जाना।
     वृक्षारोपण-
1. वृक्षारोपण करना।
2. पेड़-पौधों की नियमित देखभाल हेतु बच्चों को जिम्मेदारी सोपना।
3. पर्यावरण के सम्बन्ध में सूक्तियाँ एवं सद् वाक्य लिखना।
    बच्चों से जुड़ाव-
1. सभी शिक्षकों द्वारा बच्चों के पारिवारिक परिवेश से परिचित होने का प्रयास करना।
2. बच्चों को सहज रूप से प्रश्न पुछने के अवसर देना।
3. बच्चों को हतोत्साहित करने वाली शब्दावली का प्रयोग नहीं करना।
4. बच्चों की विभिन्नताओं को स्वीकारना तथा उनकी विभिन्नताओं के अनुरूप पढ़ाई की व्यवस्था करना।
 पूर्ण मात्रा तक सीखने के लिए कक्षा को संगठित/व्यवस्थित करना।
1. बच्चों की सीखने की गति अनुसार गतिविधियाँ आयोजित करना।
2. गतिविधि की आवश्यकतानुसार कक्षा की बैठक व्यवस्था करना।
3. सीखने के समय को इस तरह नियंत्रित करना कि बच्चे अधिकतम समय सीखने में ही लगाए।
4. सभी बच्चे सक्रियता से पूर्ण मात्रा तक स्वयं सीखे ऐसी स्थिति निर्मित करना।
    सीखने के अवसर-
1. सभी बच्चे सीखने की प्रक्रिया में बराबरी से भाग ले, ऐसी व्यवस्था बनाना।
2. सक्रियता से भाग न लेने वाले बच्चों की समस्या जानकर उन्हें सहभागिता हेतु प्रेरित करना।
3. शैक्षिक भ्रमण का आयोजन करना।
4. सभी बच्चों को प्रश्न पुछने व अपनी बात रखने के पर्याप्त अवसर देना।
5. बच्चों को रुचि व योग्यता के अनुसार सीखने के अवसर देना।
     सह-सामग्री का प्रभावी उपयोग-
1. TLM की पहचान कर उसे उचित तरीके से प्रदर्शित करना, तथा उद्देश्यपूर्ण तरीके से TLM का उपयोग करना जैसे फर्श, दीवारों का उपयोग करना, सहज रूप से उपलब्ध दृश्य, श्रव्य सामग्री का उपयोग करना।
2. आवश्यकतानुसार TLM का स्वयं/सहायता से निर्माण करना।
3. शिक्षकों द्वारा पुस्तकालय की पुस्तकों को सीखने सिखाने की प्रक्रिया में उपयोग करना।
सीखने के प्रभावी अनुभव प्रदान करना-
1. सीखने में सहायक एवं रुचिकर गतिविधियाँ करना।
2. अधिक से अधिक बालकेन्द्रित गतिविधियाँ करवाना।
3. एकल व सामूहिक दोनों प्रकार की गतिविधियाँ करवाना।
4. बच्चों से सरल व उपयुक्त प्रश्न पुछकर उनकी समझ विकसित करना।
5. शिक्षकों द्वारा बच्चों के अनुभव एवं ज्ञान का आकलन करना तथा उसका उपयोग करना।
6. बच्चों को समूह में स्वतंत्र रुप से सीखने के अवसर प्रदान करना।
7. शिक्षक द्वारा बच्चों के ज्ञान प्राप्त करने के अलग-अलग चरणों में एक सहयोगी की भूमिका निर्वाह करना।
8. बच्चे पढ़ाई को चुनौती के रुप ले इसके लिए शिक्षक द्वारा सब की सहभागिता कराना।
9. मस्तिष्क मंथन वाले प्रश्नों से बच्चों की प्रतिभा का विकास किया जाना।
मूल्यों के विकास को बढ़ावा देना-
1. पाठ्य वस्तु द्वारा में नैतिक मूल्यों से सम्बन्धित बिन्दुओं को चिह्नित करना।
2. शाला में मूल्यों के विकास हेतु गतिविधियों का आयोजन करना।
3. शिक्षण के समय पाठ्य वस्तु में निहित नैतिक मूल्यों को परोक्ष रूप से प्रदर्शित करवाना।
4. शिक्षक द्वारा आदर्श रूप में स्वयं को प्रस्तुत करना।
5. प्रार्थना सभा/विशिष्ट अवसरों पर मूल्यों के उदाहरण प्रस्तुत किए जाना।
6. अच्छे विद्यार्थियों को समय-समय पर प्रोत्साहित/पुरस्कृत करना।
7. शिक्षक द्वारा बच्चों में नैतिक मूल्यों के विकास पर नजर रखना और आवश्यकता अनुसार योजना  बनाना। 
8. बच्चे के व्यवहार में नैतिक मूल्य पर लक्षित हो ऐसे प्रयास करना।
9. वार्षिक महोत्सव में शाला एवं समाज की ओऱ से सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित कर बच्चों को प्रोत्साहित      करना।
 प्रभावी संवाद
1. शिक्षक द्वारा बच्चों से बातचीत के दौरान भाषा में उतार-चढ़ाव के साथ सही उच्चारण एवं हावभाव का प्रदर्शन करना।
2. कक्षा में सभी बच्चों को संवाद करने का अवसर प्रदान करना।
3. अगले शिक्षण बिन्दुओं के लिये सूचनाएँ एवं संकेत देना।
4. शिक्षक द्वारा अपने विचार एवं अनुभवों को बच्चों के साथ बाटना।
5. वर्तमान शिक्षण को आगामी सीखने से जोड़ना।
7. बच्चों की बात को ध्यान से सुनना एवं उनके अनुभवों को महत्व देना।
8. बच्चों की समस्याओं को ध्यान से सुनना तथा साथी शिक्षकों के साथ बैठकर हल निकालना।
9. बच्चों के पालकों से बच्चों की प्रगति पर चर्चा करना।
10. बच्चों की झिझक दूर करना ताकि वे बेझिझक होकर संवाद कर सके।
मूल्यांकन 
1. बच्चों के प्रगति अभिलेखों का पालकों से अवलोकन कराया जाना।
2. मूल्यांकन को स्व मूल्यांकन में परिवर्तित कराने का प्रयास किया जाना।
3. मूल्यांकन का विश्लेषण करना तथा बच्चों की कमजोरियों को पहचानना।
4. मूल्यांकन उपरांत उसका पुन शिक्षण किया जाना।
5.कमजोरियों के दूर करने के लिए विशिष्ट एवं नवाचारी क्रियाओं का उपयोग किया जाना।
सामाजिक आयाम
(अ) शाला समुदाय संबंध
1. शिक्षक द्वारा समुदाय के लोगों बीच जाकर परस्पर बातचीत करना। 
2. शाला की गतिविधियों में समुदाय के लोगों को शामिल करना।
3. अभिभावकों को उनके बच्चों की शैक्षणिक एवं सह-शैक्षणिक प्रगति को जानने के सहज अवसर उपलब्ध करना।
4. समुदाय के लोगों को शाला के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के सहज अवसर उपलब्ध कराना।
(ब) शिक्षक अभिभावक संबंध
1. समय-समय पर अभिभावकों को शाला में आमंत्रित किया जाना।
2. विद्यालय की विभिन्न गतिविधियों में अभिभावक सहभागिता करें ऐसे प्रयास करना।
3. शिक्षक द्वारा अभिभावकों के साथ बैठकर समस्याओं पर चर्चा करना।
4. अभिभावकों को बच्चों की शैक्षिक प्रगति सम्बन्धित जानकारी देना।
5. अनियमित/अनुपस्थित रहने वाले बच्चों को नियमित शाला भेजने हेतु प्रेरित किया जाना।
6. सभी बच्चों के अभिभावकों से एक निश्चित समय अन्तराल में संपर्क किया जाना।
7. अभिभावक स्वेच्छया से शाला के लिए स्रोत जुटाये ऐसे प्रयास करना। 
8. अभिभावक समस्याओं का निराकरण करने में शाला प्रबंधन समिति को सहयोग दे, तथा शाला विकास योजना के निर्माण एवं क्रियान्वयन में बेहत्तर तालमेल से कार्य करें ऐसे प्रयास शिक्षकों द्वारा किए जायें।
(स) शाला प्रबंधन समिति
1. शाला प्रबंधन समिति के सहयोग से शाला विकास योजना बनाना, शाला सुधार से सम्बन्धित मुद्दों पर चर्चा करना, शाला सुधार हेतु क्रमबद्ध योजना बनाना, लिए गए निर्णयों के क्रियान्वयन हेतु जिम्मेदारियों का विवरण किया जाना।
(द) अन्य संस्थाओं से सम्बन्ध
1. अन्य संस्थाओं के प्रतिनिधियों को शाला में आमंत्रित करना। 
2. इनके अनुभव व जानकारी को बच्चों के बीच बाँटने का प्रयास करना।
3. बच्चों के अनुभवों व ज्ञान में वृद्धि हेतु अन्य संस्थाओं का भ्रमण कराया जाना। 
नन्हे इंसान को अपने चारों ओर की दुनिया को जानना-समझना कैसे सिखाया जाये, कैसे शिक्षा पाने में उसकी मदद की जाये, उसके दिमागी काम को आसान बनाया जाए।  कैसे उमसे मानव-गरिमा की चेतना, इंसान की नेकी में विश्वास और मातृभूमि से असीम प्रेम की भावनाएं विकसित की जाए ।
   कैसे बच्चे की सूक्ष्म बुद्धि और संवेदनशील ह्रदय में उदात्त मानवीय आदर्शों के प्रति आस्था और निष्ठा के पहले बीज बोए जाएं। यही वह कार्य है, जो एक अध्यापक छात्रों को अपने विषय का ज्ञान देने के साथ-साथ उसके चरित्र-निर्माण के लिए करता है। 
  एक अध्यापक के रूप में, आपके पास प्रत्येक विद्यार्थी के शैक्षिक अनुभव को सकारात्मक या नकारात्मक ढंग से प्रभावित करने की शक्ति होती है। चाहे जानबूझकर हो या अनजाने में, आपके निहित पूर्वाग्रहों और विचारों का इस बात पर अवश्य प्रभाव होगा कि आपके विद्यार्थी कितनी बराबरी के साथ सीख रहे हैं। आप अपने विद्यार्थियों में पढ़ने की रुचि पैदा करने हेतु उपरोक्त कदम उठा सकते हैं। ऐसा कर आप अपनी शाला में एक सकारात्मक शैक्षिक पर्यावरण विकसित कर सकते हैं। 

                    कैलाश मंडलोई सहायक शिक्षक

सोमवार, 6 सितंबर 2021

तितली रानी

तितली 
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रंग-रंग की प्यारी तितली,
बच्चों के मन को भाती हो।
जब-जब पास बुलाते तुमको,
तुम दूर-दूर क्यों जाती हो।।

क्यों रोज सबेरे उठ जाती हो,
बगिया की सैर लगाती हो।
कभी बैठती डाल पात पर,
क्यों फूलों पर मंडराती हो।।

हम बच्चों की प्यारी तितली,
इतने रंग कहाँ से लाई हो।
कितने सुंदर पंख तुम्हारे,
कौन देश से आई हो।। 
कैलाश मण्डलोई "कदंब"

बच्चे

 बगिया के फूल है बच्चे

माली अच्छे से पानी खाद देना

घर और उसका प्रभाव-बच्चों में संस्कार दे

     मनुष्य के विकास को ले कर एक बार एक प्रयोग किया गया. दो बच्चों को उन के जन्मते ही घने जंगल में गुफा के भी...